मेरी फ़िक्रों में तू यूँ न वक़्त जाया कर कैसे कहुँ , मैं इस काबिल नहीं ... माना जुड़े है तार हमारे कुछ यूँ गहरे.. दिल चाहे भी तो, तेरे सिवा कही और न ठहरे.. मैं विचलित चंचल खारी धारा हूँ.. तू मीठा शांत निर्मल गंगा का पानी है .. तुझसे मौन , रहने का इरादा नहीं मेरा .. मगर तुझे बेवजह उलझने मैं दूँ . ऐसा कैसे मैं करुँ . तुझमे बस्ता सुकून मेरा .. तेरे ख्वाबो को हक़ीकत कर सकूँ.. अब यही जूनून है मेरा .. ©A Saran #fikr