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अपेक्षा और सत्यप्रेम एक छोटे से मिलन के बाद बिछ

अपेक्षा और सत्यप्रेम

एक छोटे से मिलन के बाद बिछड़ते हुए प्रेमी युगल के भाव। 
उस मानसिक स्थितियों में उभरते कुछ प्रश्नोत्तर।

नायक का प्रश्न 
तुम जा रहे थे ऐसे, जबरिया भेजे जा रहे जैसे,
काली लटें झूलीं उलझकर, कुछ अनमनापन रहा चेहरे पर,
पैरों में था भारीपन, कदमों में बे-मन का असर,
दुपट्टे में लिपटी उंगलियां, कर रही थी  मन की चुगलियां।

नायिका का उत्तर
रुकती मैं तो कैसे, आपकी जुबां पर क्यों ताला था वैसे,
क्यूं तुमने न कुछ किया, हाथ पकड़ क्यों न रोक लिया, 
करते तो एक इशारा मनुहार में, ‘बेतौल’ हक तो तुम्हें भी मिला है प्यार में, 
सांवरिया ने चाहा पीछे से एक बार मेरा नाम लो,  कदम बढ़ा कलाई से मुझे थाम लो।

वर्तमान स्थिति –
नायक :
मेरी निगाहें दूर तलक, तुम्हे जाते देखती रहीं,
मेरी उंगलियां, नम आंखों की कोर पोंछती रहीं।

नायिका:
मेरी पीठ पर उस मोड़ तलक, आपकी निगाहें चुभती रहीं,
पीछे मुड़ कर न देखा मैंने क्योकि, रास्ते भर आंखें मेरी सुबकती रहीं।

©बोल_बेतौल by Atull Pandey
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