तरतीब वो तरतीब भरा जीवन देख कर काँप जाता हूं, बिना पलक झपकाए, शोणित आंखों से उसे बस तकता रहता हूँ। डर लगता है कि कहीं पलक झपकाने पर मचे कंपन से ये दुर्बल ढाँचे सा अनुक्रमिक जीवन खिंड न जाए। ©Abhishek 'रैबारि' Gairola तरतीब वो तरतीब भरा जीवन देख कर काँप जाता हूं, बिना पलक झपकाए, शोणित आंखों से उसे बस तकता रहता हूँ। डर लगता है कि कहीं पलक झपकाने पर मचे कंपन से