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चाँद का टुकड़ा जब कभी भी चाँद को देखता हूँ ,तो ओज

चाँद का टुकड़ा जब कभी भी चाँद को 

देखता हूँ ,तो ओजत्व ख्यालो की

भाव बन कर अन्यास ही मुखर होते है ,


तू धरा पर है 

जैसे हो कोई चाँद का टुकड़ा,

विहशीत जाऊँ मैं 

तेरे रूप पर कितना प्यारा है मुखड़ा,
चाँद का टुकड़ा जब कभी भी चाँद को 

देखता हूँ ,तो ओजत्व ख्यालो की

भाव बन कर अन्यास ही मुखर होते है ,


तू धरा पर है 

जैसे हो कोई चाँद का टुकड़ा,

विहशीत जाऊँ मैं 

तेरे रूप पर कितना प्यारा है मुखड़ा,