चाँद का टुकड़ा जब कभी भी चाँद को देखता हूँ ,तो ओजत्व ख्यालो की भाव बन कर अन्यास ही मुखर होते है , तू धरा पर है जैसे हो कोई चाँद का टुकड़ा, विहशीत जाऊँ मैं तेरे रूप पर कितना प्यारा है मुखड़ा,