सिंक में रखे हुए आख़िरी झूठे प्याले के साथ सब्ज़ी कौन सी बने इस उधेड़बुन में फूलती रोटियों के बीच धीमी कभी तेज आँच पर स्वेटर पर ऊन से लेटेस्ट डिजाइन बनाते हुए कभी उलझे केशों को सँवारते हुए कभी जूडे़ में ही बंधे हुए घूँघट को सिर पर सरकाते दबे मुँह की बातें गालों पर अँगुलियों के निशान छुपाते इन्ही सबके बीच कहीं ना कहीं से जन्म ले ही लेती है गृहिणियों की कविता!! विद्रोही कविता #अनाम_ख़्याल #रात्रिख़्याल #गृहिणी #कविता