अब बन चुका हूं पत्थर मैं -(2) नही रहा कुछ सुनाई दे, बेरंग इस जिंदगी से अब मुझे रिहाई दे... मिट्टी से बने, मिट्टी में मिलेंगे -(2) दुनियादारी की रीति में, मुझको न जग हंसायी दे, बेरंग इस जिंदगी से अब मुझे रिहाई दे... चल पड़ा हूं जिस राह में, ऐ ख़ुदा मुझको ख़ुदाई दे -(2) बनते बिगड़ते रिश्तों में, मुझको न कुछ दिखाई दे, बेरंग इस जिंदगी से अब मुझे रिहाई दे..... -©अभिषेक अस्थाना(स्वास्तिक) अब मुझे रिहाई दे... अब बन चुका हूं पत्थर मैं -(2) नही रहा कुछ सुनाई दे, बेरंग इस जिंदगी से अब मुझे रिहाई दे... मिट्टी से बने, मिट्टी में मिलेंगे -(2)