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कामातुरं न भय न लज्जा ! शिक्षा--- को फिर से धर्म-

कामातुरं न भय न लज्जा !
शिक्षा--- को फिर से 
धर्म- अर्थ,-काम,और मोक्ष
के व्यापक स्वरूप को समझाना
होगा !
तब--पुरुष व स्त्री का अर्थ
समझ आएगा ! इक बात तो साफ है पुरुष के लिए स्त्री सदैव ही आकर्षण का कारण रही है ईश्वर ने ऐसा ही बना कर भेजा है किंतु आज के युग में ये आकर्षण इक बीमारी बन चुका है। कारण स्वंय स्त्री ही कहुंगी मैं । क्योंकि स्त्री भली भांति समझ चुकी है पुरूष के गुलामी की चाबी है वो। जब मैं छोटी थी तो मुझे एक विवेकी स्त्री ने समझाया था कि पुरुष जब जब गलत हुआ है दोषी स्त्री ही रही है मैं उस समय बहुत छोटी थी आंकलन‌ या
विश्लेषण के योग्य नहीं थी। किंतु आज समझ चुकी हूं। आज सोशल मीडिया पर बहुत कुछ है उस के पीछे सब अविवेकी स्त्रियां ही हैं। जो बातें पहले एक उम्र के बाद जानी जाती थी वो‌ बच्चा-बच्चा जानता है। कौन‌ है उसके पीछे? आपको इक घटना बताती हूं। मैंने एक बिज़नेस शुरु किया है ऑन लाईन सामान बेचने की। किसी ने कहा कि फ बी पर पेज हैं बहुत वहां पर कीजिए ये काम । चूंकि मेरी ऑरिजनल आईडी पर सब अपने थे और मेरी पूरी पहचान भी थी इसलिए वहां मैंने अजनबियों को एड करना ठीक नहीं समझा। फिर एक दूसरी आईडी बनाई। वहां बहुत से ग्रुप और पेज जाने कितने सदस्य। वहां पर मैं ने देखा कुछ स्त्रियों की आपत्तिजनक विडियोज़ जो‌ लोगों को आकर्षित करने का दाम तय कर रही थी। उफ्फ मैं अब तक अनभिज्ञ थी ऐसे कौतुक से। मैं ये सोचती हूं जो बात मुझ तक पहुंचीं है वो बहुत ज्यादा व्याप्त हो चुकी है तभी मुझे छू पाई। और वहां पर रिक्वेस्ट भी बहुत आती हैं अपनी औरिजनल‌आईडी पर तो मैं बहुत सोच के लेती थी चूंकि ये आईडी गुप्त ही थी और किसी प्रयोजन हेतु थी इसलिए एडिंग। पुरूष की आई तो उनकी प्रोफाइल देखती ठीक ठाक लगी एंड किया।  एड करते ही उफ्फफ ! wawing hand ,hi , hello मन बडा़ खराब हो गया। मैं साथ के साथ net off कर दी। एक घंटे बाद जब ऑन किया तो 5 missed calls on msngr. इतनी अधीरता बडा़ मन खराब हुआ। और उसी वक्त block him. ऐसी मानसिकता किसने बनाई पुरुष की ? अब दूसरा पहलू सोचो । उस पुरुष के मन को धक्का तो लगा होगा जिसे मैं ब्लॉक की। सोचो अगर पहली बार ही या हर बार ही उसे मुझ जैसी स्त्री मिलती तो क्या वो ऐसा होता। आजकल की बच्चियां भी कहती हैं कोई बात नहीं आंटी थोडा़ फ्लर्ट चलता है मजा़ आता है जब लड़कों को बैचेन करते हैं तो । कितनी दुख:दायी स्थिति है। 
अब दूसरा पहलू जिस घर की बहन सिमटी हुई होगी वो भाई को भी समेटेगी। कहा जाता है पुरुष को सभ्यता तभी आती है जब वो एक स्त्री के संसर्ग में रहता है और एक पुत्री को उसकी मां ही समेट सकती है। क्या आपके पड़ोस में आपको कोई जंगली पुरुष दिखलाई पड़ता है? कृपया बताना ज़रुर । अगर हां तो उसके आसपास रहती स्त्री पर गौर करना। वो ही कहीं न‌ कहीं  इसका कारण होगी। जो बौद्धिक तौर खुद ही नहीं सिमटी हुई उसके सानिध्य रह पुरूष जो है ही ऐसा अर्थात जिसे समाज ने पाप करने पर भी शुद्ध अर्थात् अगर‌ वो किसी के साथ अनिष्ट करता है तो उसे जीवन में बाधा नहीं आएगी वो तो खुले सांड की तरह ही हुआ न । माफ़ कीजिएगा सांड शब्द का प्रयोग किया। किंतु पुरुष तो है न वो इसलिए बाइज्जत बरी हो जाता है। क्या पहले कभी पुरुष इतना हावी हुआ अर्थात् इतना विकृत मानसिकता कभी नहीं सामने आई। 
चलो अब अपने आसपास के पुरूष जो हमारे भाई पिता पति हैं वो भी ऐसे हैं। मैंने देखा है अल्हड़ दिलफैंक पुरुषों को भी सिमटते हुए जब जब वो एक काबिल औरत के सानिध्य में आएं हैं।  अपनी बात कहुं तो यदि मैं चाहूं तो पुरुष को भटकाव दे दूं चाहूं तो भोगी को भी सन्यासी । ये सब स्त्री के हाथ होता है। आज की माएं बहुत व्यस्त हैं खुद के निर्माण में कहीं ज़रुरत है कहीं आदत तो कहीं शोंक या फिर कहीं भेड़ चाल। हां ठीक है स्त्री निभाएं ये दायित्व भी किंतु अपनी ज़िम्मेदारी को भूल कर नहीं । अगर इतना ज़रुरी है तो औलाद पैदा ही न करें। जिएं खुद की जिंदगी। पुरुष कभी बच्चा भी होता है । मुझे ऐसे कई बच्चे मिले हैं जो शुरू से ही बुरी संगत में खुद को खराब कर रहे थे । एक अध्यापक होने के नाते मैंने उनके अभिभावकों‌ को सूचना दी। ३-४ बच्चे तो सुधर भी गए और एक ऐसा था जिसकी मां को पता था वो चुपचाप ले गई अपने बेटे को। 
एक बात और कहना चाहुंगी एक स्त्री को ईश्वर‌ ने ऐसी समझ दी है जो पुरुष की कुदृष्टि को बडी़ आसानी से समझ लेती है। अब इस दृष्टि को कितनी जगह दे रही है पनपने की वो तो स्वंय एक स्त्री ही जानती है। चूंकि वो लकोकक्ति है "आटे के साथ घुन भी पिसता है" । कुछ मूढ़ स्त्रियों का कोप निर्दोष स्त्रियां भुगत रही हैं । 
कोई भी दोष को हम जितना बढा़वा देंगे वो बढे़गा ही। एक स्त्री में ताकत है वो यमराज से भी पुरुष को छीन कर ला सकती है। वो चाहे तो स्वर्ग को नर्क और नर्क को स्वर्ग  बना दे। 
#एक_चिंतन_आधार_लिए
#रजनी_के_तजु़र्बे
कामातुरं न भय न लज्जा !
शिक्षा--- को फिर से 
धर्म- अर्थ,-काम,और मोक्ष
के व्यापक स्वरूप को समझाना
होगा !
तब--पुरुष व स्त्री का अर्थ
समझ आएगा ! इक बात तो साफ है पुरुष के लिए स्त्री सदैव ही आकर्षण का कारण रही है ईश्वर ने ऐसा ही बना कर भेजा है किंतु आज के युग में ये आकर्षण इक बीमारी बन चुका है। कारण स्वंय स्त्री ही कहुंगी मैं । क्योंकि स्त्री भली भांति समझ चुकी है पुरूष के गुलामी की चाबी है वो। जब मैं छोटी थी तो मुझे एक विवेकी स्त्री ने समझाया था कि पुरुष जब जब गलत हुआ है दोषी स्त्री ही रही है मैं उस समय बहुत छोटी थी आंकलन‌ या
विश्लेषण के योग्य नहीं थी। किंतु आज समझ चुकी हूं। आज सोशल मीडिया पर बहुत कुछ है उस के पीछे सब अविवेकी स्त्रियां ही हैं। जो बातें पहले एक उम्र के बाद जानी जाती थी वो‌ बच्चा-बच्चा जानता है। कौन‌ है उसके पीछे? आपको इक घटना बताती हूं। मैंने एक बिज़नेस शुरु किया है ऑन लाईन सामान बेचने की। किसी ने कहा कि फ बी पर पेज हैं बहुत वहां पर कीजिए ये काम । चूंकि मेरी ऑरिजनल आईडी पर सब अपने थे और मेरी पूरी पहचान भी थी इसलिए वहां मैंने अजनबियों को एड करना ठीक नहीं समझा। फिर एक दूसरी आईडी बनाई। वहां बहुत से ग्रुप और पेज जाने कितने सदस्य। वहां पर मैं ने देखा कुछ स्त्रियों की आपत्तिजनक विडियोज़ जो‌ लोगों को आकर्षित करने का दाम तय कर रही थी। उफ्फ मैं अब तक अनभिज्ञ थी ऐसे कौतुक से। मैं ये सोचती हूं जो बात मुझ तक पहुंचीं है वो बहुत ज्यादा व्याप्त हो चुकी है तभी मुझे छू पाई। और वहां पर रिक्वेस्ट भी बहुत आती हैं अपनी औरिजनल‌आईडी पर तो मैं बहुत सोच के लेती थी चूंकि ये आईडी गुप्त ही थी और किसी प्रयोजन हेतु थी इसलिए एडिंग। पुरूष की आई तो उनकी प्रोफाइल देखती ठीक ठाक लगी एंड किया।  एड करते ही उफ्फफ ! wawing hand ,hi , hello मन बडा़ खराब हो गया। मैं साथ के साथ net off कर दी। एक घंटे बाद जब ऑन किया तो 5 missed calls on msngr. इतनी अधीरता बडा़ मन खराब हुआ। और उसी वक्त block him. ऐसी मानसिकता किसने बनाई पुरुष की ? अब दूसरा पहलू सोचो । उस पुरुष के मन को धक्का तो लगा होगा जिसे मैं ब्लॉक की। सोचो अगर पहली बार ही या हर बार ही उसे मुझ जैसी स्त्री मिलती तो क्या वो ऐसा होता। आजकल की बच्चियां भी कहती हैं कोई बात नहीं आंटी थोडा़ फ्लर्ट चलता है मजा़ आता है जब लड़कों को बैचेन करते हैं तो । कितनी दुख:दायी स्थिति है। 
अब दूसरा पहलू जिस घर की बहन सिमटी हुई होगी वो भाई को भी समेटेगी। कहा जाता है पुरुष को सभ्यता तभी आती है जब वो एक स्त्री के संसर्ग में रहता है और एक पुत्री को उसकी मां ही समेट सकती है। क्या आपके पड़ोस में आपको कोई जंगली पुरुष दिखलाई पड़ता है? कृपया बताना ज़रुर । अगर हां तो उसके आसपास रहती स्त्री पर गौर करना। वो ही कहीं न‌ कहीं  इसका कारण होगी। जो बौद्धिक तौर खुद ही नहीं सिमटी हुई उसके सानिध्य रह पुरूष जो है ही ऐसा अर्थात जिसे समाज ने पाप करने पर भी शुद्ध अर्थात् अगर‌ वो किसी के साथ अनिष्ट करता है तो उसे जीवन में बाधा नहीं आएगी वो तो खुले सांड की तरह ही हुआ न । माफ़ कीजिएगा सांड शब्द का प्रयोग किया। किंतु पुरुष तो है न वो इसलिए बाइज्जत बरी हो जाता है। क्या पहले कभी पुरुष इतना हावी हुआ अर्थात् इतना विकृत मानसिकता कभी नहीं सामने आई। 
चलो अब अपने आसपास के पुरूष जो हमारे भाई पिता पति हैं वो भी ऐसे हैं। मैंने देखा है अल्हड़ दिलफैंक पुरुषों को भी सिमटते हुए जब जब वो एक काबिल औरत के सानिध्य में आएं हैं।  अपनी बात कहुं तो यदि मैं चाहूं तो पुरुष को भटकाव दे दूं चाहूं तो भोगी को भी सन्यासी । ये सब स्त्री के हाथ होता है। आज की माएं बहुत व्यस्त हैं खुद के निर्माण में कहीं ज़रुरत है कहीं आदत तो कहीं शोंक या फिर कहीं भेड़ चाल। हां ठीक है स्त्री निभाएं ये दायित्व भी किंतु अपनी ज़िम्मेदारी को भूल कर नहीं । अगर इतना ज़रुरी है तो औलाद पैदा ही न करें। जिएं खुद की जिंदगी। पुरुष कभी बच्चा भी होता है । मुझे ऐसे कई बच्चे मिले हैं जो शुरू से ही बुरी संगत में खुद को खराब कर रहे थे । एक अध्यापक होने के नाते मैंने उनके अभिभावकों‌ को सूचना दी। ३-४ बच्चे तो सुधर भी गए और एक ऐसा था जिसकी मां को पता था वो चुपचाप ले गई अपने बेटे को। 
एक बात और कहना चाहुंगी एक स्त्री को ईश्वर‌ ने ऐसी समझ दी है जो पुरुष की कुदृष्टि को बडी़ आसानी से समझ लेती है। अब इस दृष्टि को कितनी जगह दे रही है पनपने की वो तो स्वंय एक स्त्री ही जानती है। चूंकि वो लकोकक्ति है "आटे के साथ घुन भी पिसता है" । कुछ मूढ़ स्त्रियों का कोप निर्दोष स्त्रियां भुगत रही हैं । 
कोई भी दोष को हम जितना बढा़वा देंगे वो बढे़गा ही। एक स्त्री में ताकत है वो यमराज से भी पुरुष को छीन कर ला सकती है। वो चाहे तो स्वर्ग को नर्क और नर्क को स्वर्ग  बना दे। 
#एक_चिंतन_आधार_लिए
#रजनी_के_तजु़र्बे