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चारु चंद्र की चंचल किरनें, खेल रहीं हैं जल थल में!

चारु चंद्र की चंचल किरनें, खेल रहीं हैं जल थल में! 
स्वच्छ चाँदनी बिछी हुई है ,अवनि और अंबर तल में!!
पुलक प्रकट करतीं हैं धरती,हरित तृणों के नोको से! 
मानों झूम रहे हैं तरु भी मंद पवन के झोंकों से!!
पंचवटी की छाया में है सुन्दर पर्ण कुटीर बना! 
उसके सम्मुख स्वच्छ शिला पर धीर वीर निर्भीक मना!!
जाग रहा वह कौन धनुर्धर जबकि भुवन भर सोता है! 
भोगी कुसुम आयुध योगी सा बना दृष्टिगत होता है!!
किस व्रत में है व्रती वीर वह निद्रा का यों त्याग किये! 
राज भोग के योग्य विपिन में बैठा आज विराग लिये!!
बना हुआ है प्रहरी जिसका उस कुटिया में क्या धन है? 
जिसकी सेवा में रत उसका तन है मन है जीवन है!!
मृत्युलोक मालिन्य मिटाने स्वामी संग जो आयीं है! 
तीन लोक की लक्ष्मी ने यह कुटी आज अपनायी है!!
वीर वंश की लाज वही है फिर क्यों वीर न हों प्रहरी! 
विजन देश है निशा शेष है निशाचरि माया ठहरी!!

#पंचवटी  से 
#मैथिलीशरणगुप्त 
##कविदिवस

©AMBIKA PRASAD NANDAN #राष्ट्रकविमैथिलीशरणगुप्तजन्मदिवस  जयश्री_RAM  Ashutosh Mishra  shiza  Dharmendra Ray   Student Student  हिंदी कविता
चारु चंद्र की चंचल किरनें, खेल रहीं हैं जल थल में! 
स्वच्छ चाँदनी बिछी हुई है ,अवनि और अंबर तल में!!
पुलक प्रकट करतीं हैं धरती,हरित तृणों के नोको से! 
मानों झूम रहे हैं तरु भी मंद पवन के झोंकों से!!
पंचवटी की छाया में है सुन्दर पर्ण कुटीर बना! 
उसके सम्मुख स्वच्छ शिला पर धीर वीर निर्भीक मना!!
जाग रहा वह कौन धनुर्धर जबकि भुवन भर सोता है! 
भोगी कुसुम आयुध योगी सा बना दृष्टिगत होता है!!
किस व्रत में है व्रती वीर वह निद्रा का यों त्याग किये! 
राज भोग के योग्य विपिन में बैठा आज विराग लिये!!
बना हुआ है प्रहरी जिसका उस कुटिया में क्या धन है? 
जिसकी सेवा में रत उसका तन है मन है जीवन है!!
मृत्युलोक मालिन्य मिटाने स्वामी संग जो आयीं है! 
तीन लोक की लक्ष्मी ने यह कुटी आज अपनायी है!!
वीर वंश की लाज वही है फिर क्यों वीर न हों प्रहरी! 
विजन देश है निशा शेष है निशाचरि माया ठहरी!!

#पंचवटी  से 
#मैथिलीशरणगुप्त 
##कविदिवस

©AMBIKA PRASAD NANDAN #राष्ट्रकविमैथिलीशरणगुप्तजन्मदिवस  जयश्री_RAM  Ashutosh Mishra  shiza  Dharmendra Ray   Student Student  हिंदी कविता