रोज़ रेज़ा जी रहे हैं डर के खौफ से यह जिंदगी, चलो अब हम सुंदर स्वपन की तस्वीर करतें है, बहुत हो चुका झूठ पर जीना अब सच को देखते हैं, मुंतजीर कब से था जिसका,दिल उसकी जागीर करतें है, दौर ए मुकद्दर कौन जान सका क्या है यह?, चलो अब मौत से टकरार करते हैं, कब्र ए मुसलसल में कब तक जी हम, किरण जिजीविषा की कर जीवंत अब विचार करते हैं, वबा-ए करोना का खौफ दिन प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा, कज़्ज़ाक ए शादमाँ का अब विनाश करतें हैं, चलो शुरू कुशल हाथ में खैर-ओ-खां मांगें यह करें मुतालबा, बेहतर की उम्मीद कर , अब जिंदगी गुलजार करतें हैं। ♥️ Challenge-549 #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें :) ♥️ विषय को अपने शब्दों से सजाइए। ♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें।