आप हैं सद - गृहस्थ किन्तु हे तपस्वी ! साधना में रत कि ज्यों बोधि का तरुवर, आपके अस्तित्व से गर्वित हिमालय, पुण्यभागी है धरा भारत की श्रीवर। "राज की गंगा" पुकारे पुनः तुमको, ले हनु-ध्वज रथ पे हो आरूढ़ प्रियवर। गिर पड़ी चरणों में लेकर ताज सत्ता, आपकी व्यक्तित्व-छवि प्रत्यक्ष शंकर। ©® संजय शर्मा 'सरस' Youtube - Sanjay Sharma Saras कवित्त