खोकर तुमको मैंने यह जाना है पत्थरों की चाहत में हीरे को गवाया है आलम अब मायूसी का ऐसा है जो खत्म नहीं होता है तेरी यादों की परछाइयां सी है मेरे जेहन में बस उन्हीं से मेरे दिन रात और मेरा गुजारा होता है होश नहीं है मुझे अब किसी बात का दिल मेरा अब तेरे ख्यालों में डूबा रहता है अब अकेला हूं तू नहीं है साथ मेरे फिर भी ना जाने इस दिल को क्यों नहीं यकीन होता है खोकर तुमको....