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कविता: इच्छा सैनिक कवि बदल कर अगर फिर से सजाना

कविता: इच्छा 
सैनिक कवि 

बदल कर अगर फिर से सजाना होता !
तो मां मैं अपने लिए
तेरी दिल से वह सारे  क्लेस  मिटा देता 
ओर उसमे फिर से भर देता तेरी अखण्ड आशीर्वाद 
फिर मैं निडर निर्भीकता से तेरी लिए संघर्ष करता

यदि मुझे ढूँढने  से मिल जाता वह तेरी रुठने की वजह 
तो ! मैं उसे अपने कंधे में बिठाकर मसान पर ले जाता 
फिर उसका अन्तिम संस्कार कर देता। " माँ "
और उस अस्ति कलश को शकुनि की पांसे की भांति
मैं पृथ्वी के गर्व में कहीं डाल देता 

 "माँ  तुझे पता है ?
अगर मेरे टूटे हुए रिश्ते को
समेटकर मुझे नव निर्माण करने मिलता !
तो मां !
मैं अपने लिए तुझे निर्माण कर लेता 
तेरी ममता ! तेरी दुलार और तेरी आशीर्वाद भी 
पर.......... मैं यह भी जानता हूं 
यह मुमकिन नहीं है क्योंकि ये सृष्टि के विरोध है !

इसलिए मुझे भी अपने तन्हाईयो यू ही भटकना पड़ेगा 
जैसे भटक रहा है अश्वत्थामा मोक्ष के लिए 
है ना  माँ ?

©SainikKavi
  #kabita