चंद शब्दो मे कैसे भर लू तुम्हे शब्द कहाँ जो टोके तुम्हे क्षितिज सा है,तुम्हारा अंजन छवि से तू रंजन। वट के जड़ सा कभी तो कभी छुई-मुई सा मन अधरों में असीम से चुप्पी तो कभी जवानी में भी खिलखिलाता बचपन छवि से तू रंजन। जग-जीवन मे जब रिश्तों की बात आई निकल के "यारी" हमारी कुंदन सी चमक आई निस्वार्थ हमारा बन्धन छवि से तू रंजन। ...जीत ©ranjit winner #रंजन