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ए! कली तुम कब पुष्प बनी, कितने प्रभात, और संध्या ढ

ए! कली तुम कब पुष्प बनी,
कितने प्रभात, और संध्या ढली।
कब से नूतन जीवन में आकर,
अनेक भ्रमरों को रिझाकर।
सौन्दर्यता से स्वयं रीझता है,
ऊपर का नील गगन।
किस शय से निर्मित किया,
क़ुदरत ने तेरा बदन। Saleem Akhter 
#nirajnandini
ए! कली तुम कब पुष्प बनी,
कितने प्रभात, और संध्या ढली।
कब से नूतन जीवन में आकर,
अनेक भ्रमरों को रिझाकर।
सौन्दर्यता से स्वयं रीझता है,
ऊपर का नील गगन।
किस शय से निर्मित किया,
क़ुदरत ने तेरा बदन। Saleem Akhter 
#nirajnandini
nirj5311016606344

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