समझ नही आता हैं लिखूं क्या, और कहूँ कैसे.... जज्बात पिरोऊ अल्फाज़ो में या खामोशी करूँ बयां जुबाँ की मायुसी से.......... चुप्पी भी अब दिल को रास आती नहि लड़खड़ाते हैं लफ़्ज मेरे,जुबाँ भी अब कुछ कह पति नहि......... आँखों की दीवारें नम है, जहन में न जाने कैसी खलिश न जाने किस बात का अफ़सोस है, कैसी ये ज़िन्दगी की आजमाइश हैं..... रजा नही हूँ जमाने के सवालों से न जाने क्यूँ दूर जाना चाहती हूँ मोहब्बत के ख्यालों से........ खुदा पर यकीन है , फिर भी जहन में सुकून नहीं जी तो रहे हैं ज़िंदगी यूँ बेवजह ,जीने का जुनून नही अजनबी हूँ मैं इस ज़िंदगी के अफसाने में... ख्वाहिश हैं बस यही,हो जाऊँ ग़ुम मैं भी कहीं अल्फाज़ो की तरह ज़िन्दगी के किसी तराने में..... समझ नही आता हूँ क्या मैं ,करूँ बयान कैसे पतझड़ के मौसम में हर पल पत्तो सी झड़ती ख्वाहिशें हो जैसे..... समझ नही आता लिखूं क्या और कहुँ कैसे............. #ankahe alfaz##@