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*प्रियतम* सोचा था कविता के माध्यम से, मैं अपना प्र

*प्रियतम*
सोचा था कविता के माध्यम से, मैं अपना प्रेम भाग कहूँ, 
छंदो में शब्दों को पिरोकर तुमसे अपना अनुराग कहुँ। 

हर पंक्ति श्रंगार संयोग से रसमय हो जिवंत रहें, 
और शब्दों की धारा में सुंदर कुछ अलंकार बहें। 

पर क्षणभंगुर वो स्वप्न मेरा कुछ ऐसे विषाद में बदला, 
वो ख़ुशी का हर एक पल सहसा अवसाद में बदला। 

निस्वार्थ प्रेम वो तेरा ऐसे तिरस्कार में बदला, 
जैसे ग्रहण लगने से उजाला सारा अंधकार में बदला। 

कविता तो अब भी है,  पर उसमें शब्द कम पीड़ा अधिक, 
रस इतने प्यासे हैं जैसे रेगिस्तान में कोई पथिक। 

अलंकार भी वियोग में तेरे विक्षिप्त हुए हैं  ऐसे, 
विरह व्यथा से हंसो का जोड़ा रुदन कर रहा हो जैसे। 

आस यही बस साँझ को तू पक्षी के जैसे लौट आये, 
अंधकार भरे जीवन में इस पूर्णिमा का मृगांक बन जाये। 

©Deepali Singh #nojoto #nojotohindi #love #poem
*प्रियतम*
सोचा था कविता के माध्यम से, मैं अपना प्रेम भाग कहूँ, 
छंदो में शब्दों को पिरोकर तुमसे अपना अनुराग कहुँ। 

हर पंक्ति श्रंगार संयोग से रसमय हो जिवंत रहें, 
और शब्दों की धारा में सुंदर कुछ अलंकार बहें। 

पर क्षणभंगुर वो स्वप्न मेरा कुछ ऐसे विषाद में बदला, 
वो ख़ुशी का हर एक पल सहसा अवसाद में बदला। 

निस्वार्थ प्रेम वो तेरा ऐसे तिरस्कार में बदला, 
जैसे ग्रहण लगने से उजाला सारा अंधकार में बदला। 

कविता तो अब भी है,  पर उसमें शब्द कम पीड़ा अधिक, 
रस इतने प्यासे हैं जैसे रेगिस्तान में कोई पथिक। 

अलंकार भी वियोग में तेरे विक्षिप्त हुए हैं  ऐसे, 
विरह व्यथा से हंसो का जोड़ा रुदन कर रहा हो जैसे। 

आस यही बस साँझ को तू पक्षी के जैसे लौट आये, 
अंधकार भरे जीवन में इस पूर्णिमा का मृगांक बन जाये। 

©Deepali Singh #nojoto #nojotohindi #love #poem