हर बार तुम्हारे ज़िद को मैने परवान चढ़ते देखा है बातों ही बातों में कई अरमान घुँटते देखा है इस क़दर जिंदगी के पथ पर मुझे बदनाम ना करो प्रेम के इस अंजुमन में मुझे सरेआम ना करो... ( पूरी कविता अनुशीर्षक में...) तुम्हारी चाहत पर मेरा कोई अधिकार तो नही है लेकिन मुझे तुमसे प्यार भी तो नही है अपने दिल के एक कोने में प्रेम मूरत बसा रखी हूँ मै इस बात को तुम्हें कितनी बार बता रखी हूँ । इस हद तक मुझे चाहोगे तो मै दोषी कहलाउँगी प्रेम की परीक्षा में असफल हो जाऊँगी मेरे बचपन का मीत, मेरे मन का मीत भी तो है