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कभी -कभी अल्फ़ाज़ों को लफ्ज़ों पर ही रोक लेते हैं गु

कभी -कभी अल्फ़ाज़ों को लफ्ज़ों पर ही रोक लेते हैं 
गुस्सा को शरारतों में तब्दील कर नादानियों को आंखों में झोंक लेते हैं ।
उल्फत की दुनिया से घूम कर रहमत की दुनिया से 
नाता जोड़ लेते है  
कभी -कभी अल्फ़ाज़ों को लफ्ज़ों पर ही रोक लेते हैं।
कुछ लोग सामने तो होते हैं ,
लेकिन आंखों से उतर जाते हैं ।
वो हर बार अपने ही बातों से मुकर जाते हैं 
उस वक़्त को याद कर ,
ये वक़्त भी गुजर जाते हैं। kuch alfaaz
कभी -कभी अल्फ़ाज़ों को लफ्ज़ों पर ही रोक लेते हैं 
गुस्सा को शरारतों में तब्दील कर नादानियों को आंखों में झोंक लेते हैं ।
उल्फत की दुनिया से घूम कर रहमत की दुनिया से 
नाता जोड़ लेते है  
कभी -कभी अल्फ़ाज़ों को लफ्ज़ों पर ही रोक लेते हैं।
कुछ लोग सामने तो होते हैं ,
लेकिन आंखों से उतर जाते हैं ।
वो हर बार अपने ही बातों से मुकर जाते हैं 
उस वक़्त को याद कर ,
ये वक़्त भी गुजर जाते हैं। kuch alfaaz