हश्र मेरी शायरी का यूं न कर ये दुनिया स्याही गिराती है मेरे कागज के पन्नों पर रुक रुककर मेरे जख्मों पर, दुख का नमक लगाती हैं।। ये दुनिया जालिम कहलाती हैं।। थका हारा काम से लौटा मैं मजाक तमाशा बन गया। मालूम नहीं इस दुनिया को मैं पत्थर से पाशा बन गया हश्र मेरी शायरी का यूं न कर जख्मों पर नमक लगाती हैं ये दुनिया जालिम कहलाती हैं।। तनेंद्र राठौड़ हश्र मेरी शायरी का