दोस्त, पहचाना मुझे। हम कभी साथ साथ, हाथों में लिए एक दूसरे का हाथ नदी किनारे की ठंडी हवा खाते हुए घुमा करते थे। फिर हम जुदा हो गए और अपनी अपनी घर गृहस्थी में खो गए।उस वक्त मोबाइल फोन नहीं हुआ करते थे, लैंड लाइन फोन भी सभी घरों में नहीं हुआ करता था। इसलिए हमारे बीच का संबंध टूट गया। पच्चीस साल बाद अचानक एक दिन मोबाइल पर उड़िया चैनल पर तुम्हारा इंटरव्यू देखा। तुम OUAT के VC बन चुके थे। तुम्हारे परिचय के साथ साथ फोन नं भी गूगल पर मिल गया तो तुमसे बात करने की इच्छा बलवती हो गई। मगर फोन नहीं लगा तो खत लिखा। मिलते ही मुझे फोन करना। तुम्हारा प्यारा दोस्त ©Nilam Agarwalla #दोस्त_के_नाम_खत