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पल्लव की डायरी दौर बगावत का,नस नस में घुल रहा है

पल्लव की डायरी
दौर बगावत का,नस नस में घुल रहा है

स्वार्थो और लालचों में अपनापन दम तोड़ रहा है

बहक गयी सब जिम्मेदारियां,

लिहाज खून का कहा रखा जाता है

अपनी जिंदगी अपने लिये

दखल कौन माँ बाप का सहता है

अंदाज जीने का इतना बदल गया है

माँ बाप का साथ अब कहा होता है

परवरिश में खुद को खपा दे

मगर कर्ज माँ बाप का कौन अदा करता है

बेटियाँ तो विदा हर जमाने मे हुयी है

मगर आज बेटे परायेपन के शिकार हो जाते है
                                                  प्रवीण जैन पल्लव

©Praveen Jain "पल्लव"
  कर्ज माँ बाप का कौन अदा करता है
#bete

कर्ज माँ बाप का कौन अदा करता है #Bete #कविता

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