बरसों से रुकी उस तस्वीर की तारीफ क्या करूं, जो बंद कमरे में किसी के सहारे रुकी है, सच तो ये है, हुनर उस तस्वीर में नहीं उस किल में है, जो बरसों से तस्वीर की बोझ लेकर रूकी है, कील,