ज़रा सुनो ! मुझे रुकी हुई घड़ियाँ नहीं पसंद... तुम भी तो मेरा समय ही हो... तुम्हारा रुक जाना कैसे भा सकता है मुझे... तुम्हें दूर से हर पहर गतिशील ही देखना चाहता हूँ मैं... घड़ी में तो Duracell का सेल डाल कर मैं घड़ी को चला दूंगा और कर दूंगा इसका समय ठीक...पर तुम अगर ठहर गयीं तो तुम्हें कैसे चलाऊँगा...तुम्हारा मुझ लल्लूदसहेरी की तरह रुक जाना सही नहीं...तुम तो आगे बढ़ने के लिए ही हो, उड़ने के लिए ही हो...रात हो तो जुगनू की तरह...दिन हो तो तितली की तरह...वैसे तुम्हें सच बताऊँ तुम दिन या रात की मोहताज भी नहीं...जब दिन या रात कुछ भी नहीं होगा तब भी तुम समय की तरह आगे बढ़ोगी, समय की तरह उड़ोगी ... तुम्हारा इस तरह मुझे पीछे छोड़ कर आगे बढ़ जाना मुझे बहोत आकर्षक लगता है...अनंत उ