बंदूक की नोंक से वो अब डराने नहीं जाते कलम की नोंक वाले कहीं पहचानें नहीं जाते सूरत बदल गई है हुलिया बदल गया है आजकल के डाकू कहीं पहचाने नहीं जाते कि तहजीब बदली है हर सलीका है बदला कपड़ों से आजकल लोग पहचानें नहीं जाते नया जमाना है राम नया तराना है कौन दोस्त-कौन दुश्मन पहचाने नहीं जाते गिरगिट से भी बहरूपिया है आज आदमी मीठी बातों के जहर यहां पहचाने नहीं जाते वफा की कसीदें पढ़ते हैं प्यार की कसमें खाते हैं वो बेवफा लोग अब कहीं पहचाने नहीं जाते मरता है कासिम रोज कहीं अपनों की मौत मीरजाफर दुनिया में कहीं पहचाने नहीं जाते 🖋️...*रामशंकर सिंह* उर्फ *बंजारा कवि* #Hindi #hindi_poetry #urdu #shayri #gajal #Dark