धीरे धीरे की परिभाषा, सिखाती है प्रकृति। पृथ्वी की रचना से -प्रलय तक , जन्म से मृत्यु तक, हरेक में मौजूद है “धीरे -धीरे “ मनुष्य का शिशुरूप से, वयस्करूप तक धीरे -धीरे बढ़ना। अक्षरों,शब्दों,वाक्यों द्वारा, धीरे -धीरे भाषा की पहचान होना । व्यवहार ,आचरण,नियम द्वारा , धीरे -धीरे समाज में रहना सिखना। सही -ग़लत,अच्छा -बुरा ,अनुभवों द्वारा , धीरे -धीरे रिश्तों की गरिमा को सम्भालने की कला सिखना। सेकेंड ,मिनट ,घंटे द्वारा , धीरे -धीरे समय का मूल्य समझना । जीवन में कर्म द्वारा , धीरे -धीरे पाप-पुण्य का घड़ा भरना। धीरे -धीरे चलकर ही, मंज़ील को प्राप्त करना। ©Sunita Mandhane #Dhire #prakarti #Twowords