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मैं तम लिप्त भयभीत कर देने वालें गलियारों में दौड़

मैं तम लिप्त भयभीत कर देने वालें गलियारों में दौड़ती रही कि
एक दिवस चमकते जुगनू से कहूंगी अपने दबे जज़्बात,
हारे चक्षु जुगनू को तलाश रहे थे और जिंदगी ने करा दी 
जिंदादिल सूर्य से मुलाकात।
कभी-कभी जिंदगी हमें पौरुष से भी अधिक हाथों में थमा जाती है,
तो कभी-कभी कर देती है खुशियों से भरी बंद तंग मुट्ठी
को रिक्त । और जिंदगी की इन प्रतिक्रियाओं से 
मिलता है हमें अमूल्य तजुर्बा!

 _mirror of words तजुर्बा
मैं तम लिप्त भयभीत कर देने वालें गलियारों में दौड़ती रही कि
एक दिवस चमकते जुगनू से कहूंगी अपने दबे जज़्बात,
हारे चक्षु जुगनू को तलाश रहे थे और जिंदगी ने करा दी 
जिंदादिल सूर्य से मुलाकात।
कभी-कभी जिंदगी हमें पौरुष से भी अधिक हाथों में थमा जाती है,
तो कभी-कभी कर देती है खुशियों से भरी बंद तंग मुट्ठी
को रिक्त । और जिंदगी की इन प्रतिक्रियाओं से 
मिलता है हमें अमूल्य तजुर्बा!

 _mirror of words तजुर्बा

तजुर्बा