"उम्मीद" जनता भी हुई, सत्ताएं भी हुई लापरवाह, अब केजरीवाल नहीं आता इश्तिहारों मे, टीवी पे नहीं दिखता," वाह मोदी जी वाह", पूरी कविता कैप्शन मे पढें । "उम्मीद" झुके सरों की ताकत होती है उम्मीद, कभी सबकुछ, अब कुछ नहीं, हार जीत का रिश्ता ही कुछ है अजीब, आज हारे है,कल उठना जानते है, अब जो हम दुश्मनों को पहचानते है,