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"यथार्थ" गहरा होता है सागर सा , विस्तृत क्षितिज स

"यथार्थ" 
गहरा होता है सागर सा ,
विस्तृत क्षितिज सा,
और दृश्य आईने सा ।
हम उसमें जितना डूबते हैं, 
फैलते हैं  और जैसा,
जितना देखते हैं; उस वक्त
हमारे लिए बस
उतना ही यथार्थ/ सत्य होता है।

और बाकी सब होती हैं;
इस ब्रह्मांड की
कोरी "कल्पनाएं"..!
क्यूंकि
:
"स्वयं सत्य भी एक
बेहद सुंदर कल्पना है"
-Anjali Rai
 "यथार्थ" 
गहरा होता है सागर सा ,
विस्तृत क्षितिज सा,
और दृश्य आईने सा ।
हम उसमें जितना डूबते हैं, 
फैलते हैं  और जैसा,
जितना देखते हैं; उस वक्त
हमारे लिए बस
"यथार्थ" 
गहरा होता है सागर सा ,
विस्तृत क्षितिज सा,
और दृश्य आईने सा ।
हम उसमें जितना डूबते हैं, 
फैलते हैं  और जैसा,
जितना देखते हैं; उस वक्त
हमारे लिए बस
उतना ही यथार्थ/ सत्य होता है।

और बाकी सब होती हैं;
इस ब्रह्मांड की
कोरी "कल्पनाएं"..!
क्यूंकि
:
"स्वयं सत्य भी एक
बेहद सुंदर कल्पना है"
-Anjali Rai
 "यथार्थ" 
गहरा होता है सागर सा ,
विस्तृत क्षितिज सा,
और दृश्य आईने सा ।
हम उसमें जितना डूबते हैं, 
फैलते हैं  और जैसा,
जितना देखते हैं; उस वक्त
हमारे लिए बस