टूटकर भी मुस्कुराता हूँ मैं, ग़मों को हँसी से छुपाता हु मैं ज़िन्दगी अधूरी न रह जाए ज़ीने में इसलिए, खुद का कुछ इस तरह मज़ाक़ बनाता हूँ मैं टूटकर भी मुस्कुराता हूँ मैं, ग़मों को हँसी से छुपाता हु मैं शायरियां अधूरी न रह जाए इसलिए, खुद से अल्फाज़ो को ढूंढकर लाता हूँ मैं