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टूटकर भी मुस्कुराता हूँ मैं, ग़मों को हँसी से छुपात

टूटकर भी मुस्कुराता हूँ मैं,
ग़मों को हँसी से छुपाता हु मैं
ज़िन्दगी अधूरी न रह जाए ज़ीने में इसलिए,
खुद का कुछ इस तरह मज़ाक़ बनाता हूँ मैं टूटकर भी मुस्कुराता हूँ मैं,
ग़मों को हँसी से छुपाता हु मैं
शायरियां अधूरी न रह जाए इसलिए,
खुद से अल्फाज़ो को ढूंढकर लाता हूँ मैं
टूटकर भी मुस्कुराता हूँ मैं,
ग़मों को हँसी से छुपाता हु मैं
ज़िन्दगी अधूरी न रह जाए ज़ीने में इसलिए,
खुद का कुछ इस तरह मज़ाक़ बनाता हूँ मैं टूटकर भी मुस्कुराता हूँ मैं,
ग़मों को हँसी से छुपाता हु मैं
शायरियां अधूरी न रह जाए इसलिए,
खुद से अल्फाज़ो को ढूंढकर लाता हूँ मैं