Nojoto: Largest Storytelling Platform

छोटी-सी बात //अनुशीर्षक इंसान चाहे जिस भी उम्र, श

छोटी-सी बात 
//अनुशीर्षक इंसान चाहे जिस भी उम्र, शहर, गांव, जाति का हो; भागता है प्रकृति की ही गोद में... जब भी सुकून खोजता है।

कारपोरेट की उथल-पुथल से जब ऊब मचे, टेलोफोन की घंटियां और मीटिंग रिमाइंडर कान बहरे करने लगे, जो फाइलों की कतार लंबी होती जाए और कम्प्यूटर के बटन की खटर-पटर और काॅफी मशीन की घर्र-घर्र से दिल बैठा जाए.... तब थोड़ा खिड़की से बाहर‌ नजर डालें और पार्किंग से आगे कुछ ना दिख रहा हो, फिर भी बाहर ताकने का मन करे तो.... साहिबा, घड़ी देख लें.... समय हो गया शायद!

बड़े-बड़े उड्डयन सेतुओं का जंजाल, उसके उपर मधु की डली पर लगी असंख्य चींटियों की तरह दौड़ती दोपहिया, तिपहिया और चारपहिया करोड़ो मोटरगाड़ियां, उन सेतुओं के नीचे से गुजरती रेलगाड़ियों की छुक-छुक तो कहीं सिर के ऊपर से गुजरता मेट्रो ब्रिज, पास कभी एक के पीछे एक खड़ी बसों की कतार डेढ़-दो किलोमीटर की दूरी तक। 
हर सिग्नल पर बिक रही स्ट्राबेरी, गुलाब के फूल और फूटकर खिलौनें।
सड़क के दोनों तरफ फैला शहरीकरण का समीकरण जो बिल्कुल ही असंतुलित जान पड़ता है। पर, जिंदगी दौड़ती हुई महसूस होती है। सब भाग रहे यहां, सभी को जल्दी है, क्या जाने कहां पहुंचना है, मालूम नहीं कि क्या हासिल करना है।
छोटी-सी बात 
//अनुशीर्षक इंसान चाहे जिस भी उम्र, शहर, गांव, जाति का हो; भागता है प्रकृति की ही गोद में... जब भी सुकून खोजता है।

कारपोरेट की उथल-पुथल से जब ऊब मचे, टेलोफोन की घंटियां और मीटिंग रिमाइंडर कान बहरे करने लगे, जो फाइलों की कतार लंबी होती जाए और कम्प्यूटर के बटन की खटर-पटर और काॅफी मशीन की घर्र-घर्र से दिल बैठा जाए.... तब थोड़ा खिड़की से बाहर‌ नजर डालें और पार्किंग से आगे कुछ ना दिख रहा हो, फिर भी बाहर ताकने का मन करे तो.... साहिबा, घड़ी देख लें.... समय हो गया शायद!

बड़े-बड़े उड्डयन सेतुओं का जंजाल, उसके उपर मधु की डली पर लगी असंख्य चींटियों की तरह दौड़ती दोपहिया, तिपहिया और चारपहिया करोड़ो मोटरगाड़ियां, उन सेतुओं के नीचे से गुजरती रेलगाड़ियों की छुक-छुक तो कहीं सिर के ऊपर से गुजरता मेट्रो ब्रिज, पास कभी एक के पीछे एक खड़ी बसों की कतार डेढ़-दो किलोमीटर की दूरी तक। 
हर सिग्नल पर बिक रही स्ट्राबेरी, गुलाब के फूल और फूटकर खिलौनें।
सड़क के दोनों तरफ फैला शहरीकरण का समीकरण जो बिल्कुल ही असंतुलित जान पड़ता है। पर, जिंदगी दौड़ती हुई महसूस होती है। सब भाग रहे यहां, सभी को जल्दी है, क्या जाने कहां पहुंचना है, मालूम नहीं कि क्या हासिल करना है।
shree3018272289916

Shree

New Creator