हे अहिंसा के महा पुजारी अर्ध नग्न डंडा धारी। तेरे सपनों का भारत खुद सपना बनकर रह गया। राजनीति ने तेरे बच्चों का देखो बापू क्या हाल किया हिंसा रूपी राक्षस ने जीना ही मुहाल किया । मेल मोहब्बत दीन धरम दरिया में अब बह गए हिंदू मुस्लिम सिख इसाई किताबों में ही रह गए । बापू तेरे स्वदेशी का नारा बड़ा ही प्यारा है मगर देसी बाजारों में विदेशी सामान ही छाया है । देश तुम्हारा भटक गया है अहिंसा की राह से धू-धू करके जल रहा है नफरतों के दाह से । हे जन मन के भाग्य विधाता पुनः तुम्हें आना होगा जन मन के बहरे कानों में अमन के गीत गाना होगा। 2 अक्टूबर गांधी जयंती एवं शास्त्री जयंती विनम्र श्रद्धांजलि धर्मेन्द्र सिंह ©Dharmendra singh #Gandhi Jyanti