गांव में पक्की सड़कें मिली पर कच्चे रास्ते गायब थे, ऊंचे,पक्के मकान तो मिले पर पुराने छप्पर गायब थे सावन की कजरी भी गयी और झूले भी गायब थे परम्परा,खेल,त्यौहार नही पहनावे,मेले भी गायब थे स्वार्थी चलन था जोगी,फकीरों के पांव गायब थे आम के बगीचे सूने, पीपल की छांव गायब थे एकाकी परिवार दिखे पर उनमें परिवार गायब थे बच्चे तो बड़े हो गये पर उनमें संस्कार गायब थे खो गयी बड़की बुआ, चाचा,ताऊ भी गायब थे गांव भर को रिश्तों में बांधे वो लोग भी गायब थे हमे गोद उठाने वाले पड़ोसी के मन गायब थे गाँव की सूनी गलियों में मेरे बचपन गायब थे पश्चिमी किचन तो थे पर रसोईघर गायब थे सबमे प्यार,सौहार्द दिखे वो घर भी गायब थे महिलाओं में संस्कारों के परिधान भी गायब थे माता- पिता , बुजुर्गों के सम्मान भी गायब थे अपने हक की चाह में भाई के प्यार गायब थे संपत्ति की चाह में पिता के दुलार गायब थे घरों में ऊंचे गेट थे पर चौखट के चलन गायब थे कमरों में सजावट थी पर घर के आंगन गायब थे मकानों की पट्टियों पर पिता के नाम गायब थे बुजुर्ग पास बैठे वो चौपालों के शाम गायब थे अपने घर तो थे पर बुजुर्गों के मकान गायब थे शहर बनने की चाह में गांवों की पहचान गायब थे ★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★ हमारी रचना पढ़ने के लिये शुक्रिया कमेंट करके बताइये रचना कैसी लगी ●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●● By -अश्वनी श्रीवास्तव ●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●● © Ashwani Srivastava #गांव #मेरा #Love #जिंदगी #MereKhayaal