टूटी टांगों से और फूटी किस्मत से भला कौन पहुंच पाया है तुम तक बिना सांसों के और बिना बातों के भला कौन जीत पाया है किसी का मन पर जब सपनों की दुनियां से जब बाहर आई घबरा कर उठ गई और दौड़ लगाने की बारी आई तो गिर गई जमीन पर न सांस काम आई न वो बातें काम आई तो बस मेरी टांगें इसलिए टांगों ( आत्मबल ) को बहुत मज़बूत रखो। ©Dr. H(s)uman , Homoeopath #आत्मबल