दंगे कोई भी मुझे आदमी मान कर छोंड देने को तैयार ना था | इतना खून का प्यासा तो ड्रैकुला भी कभी मेरे यार न था || वो पूंछ रहा था के तू चंदन धारी है,या के टोपी वाला है | न मैं चंदन न टोपी वाला हूँ, मैं तो रोटी और लंगोटी वाला हूँ | मैं बोला इसाई हू, तो उसके अंदर 1857 का जोश हिलोरें मारने लगा | और बंदा पूरी सिद्दत से फिर मारने लगा || बोला हमें पैसे सिर फोडने के मिले हैं, तुम्हें एकता के सूत्र में जोडने के नहीं | किसी भी मजहब का हो तू हमारा क्या लगता है | हम बेरोजगारों को जो पैसा दे उसीके तरफ से बजेगा || गुनाह हमारा है तो डंडे तो खाने ही पडेंगे | वर्ना इन बेरोजगारों को रोजगार दिलाने ही पडेंगे || #दंगे