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घर पर बैठे-बैठे मुझे, आज अपने बचपन की याद आ रही है

घर पर बैठे-बैठे मुझे, आज अपने बचपन की याद आ रही है।
 बचपन में मैं  कैसे, खुलकर जीता था जिंदगी वो जिंदगी चेहरे पर फिर से मुस्कुरा रही है। मेरी वो मासूम शरारते मुझे अपने पास बुला रही है। 
मुझे आज अपने बचपन की याद आ रही है,
 बचपन में मैं कैसे, रूठ कर बाहर बैठा करता था, भीतर से मेरी मां मुझे आवाज लगा रही है। 
घर पर बैठे-बैठे मुझे आज अपने बचपन की याद आ रही है।

©gabbar000786 #unframed  sun kayastha Pramodini Mohapatra
घर पर बैठे-बैठे मुझे, आज अपने बचपन की याद आ रही है।
 बचपन में मैं  कैसे, खुलकर जीता था जिंदगी वो जिंदगी चेहरे पर फिर से मुस्कुरा रही है। मेरी वो मासूम शरारते मुझे अपने पास बुला रही है। 
मुझे आज अपने बचपन की याद आ रही है,
 बचपन में मैं कैसे, रूठ कर बाहर बैठा करता था, भीतर से मेरी मां मुझे आवाज लगा रही है। 
घर पर बैठे-बैठे मुझे आज अपने बचपन की याद आ रही है।

©gabbar000786 #unframed  sun kayastha Pramodini Mohapatra
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