आजकल जाने क्या क्या ये होने लगे हैं, रंग इन्सान पल में बदलने लगे हैं। चढ़ा है नशा इन पे दौलत का इतना, ये खुद खुदा ही समझने लगे हैं। ईमान बेंचा, दिल को भी बेंचा। दौलत के बाजार में खुद को बेंचा। इनकी जरा हैसियत को तो देखो, ये बाजार में कैसे बिकने लगे हैं। रंग इन्सान पल में बदलने लगे हैं। ©नागेंद्र किशोर सिंह # रंग इन्सान पल में बदलने लगे हैं # # मेरी कलम से # शायरी#