नैणा मिलाय साहिबा थे! हियो मीरो बसग्यो । ये कैसो जादू सांवर्यो थे डाल्यों , थारी मोहनीमूरत मीरा नेह लगग्यो ।। कृष्ण-कृष्ण ही रहती जावैं , सांवर रंग अति मन भावै । सन्तन घेरा खुब सुहाये , कृष्णप्रेम के तान सुनावै ।। चूर रहे चित् मद् में थारे , पिया श्याम सुध लो जी मीरा कै । कबहु तो वाकों दरसण दीजै , मीरा आचर सुख-बदला भींजै ।। रि साँसु-नणद केै ताने-बाने , चितवै न तनिकौ आगे-पिछाने । चरणामृत कह विष भेज्यों राणै , पिन्हीं हँसी सखीं हो शंकर जासै ।। कहत् ललिता सखीं सुन जशोदा छोरो! म्हारी मीरा को आन उबारौ । बिरह की मारी दूजा पीर न जाणै थाँ बिनु मीरा म्हारी रहना न जानै ।। प्रेम-माधूर्य