कभी मंदिर, कभी मस्जिद, कभी गुरुद्वारे पर खड़ा देखा मैंने एक मां को अपनी बेटी के लिए बिलखते देखा मैंने कसूर बस इतना कि वो जमाने के साथ चल रही थी अपने अरमानों के पंख लिए बुलंदियों पर चढ़ रही थी यू तो पंख उन गिद्धों के भी कम बड़े नहीं थे मगर परवरिश थी इतनी खोटी कि... .हर बार ख्वाबों के पंख बिखरते देखा मैंने... कभी मंदिर ,कभी मस्जिद, कभी गुरुद्वारे पर खड़ा देखा मैंने एक मां को अपनी बेटी के लिए बिलखते देखा मैंने.. ©Chitra Gupta #Happy daughters day