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किताबें बड़ी हसरत लिए बंद अलमारी के शीशों से झांक

किताबें 
बड़ी हसरत लिए बंद अलमारी के शीशों से झांकती किताबें, 
सोचती होगी पहले जिनसे रोज़ होती थी बातें, 
अब तो महीनों होती नही मुलाक़ातें। 

जो रातें गुजरती थी अक्सर साथ में, आज वो कटती है
 computer के साथ में, 
देख बड़ी बेचैन रहती हैं किताबें क्योंकि, 
उन्हें अब नींद में चलने की आदत हो गई है। 

जो किस्से कहानियां वो सुनाती थीं, battery जिनकी कभी
न खत्म होती थी, 
वो झलक अब नजर कही आती नही, 
रिश्ते रह गए उजड़े उजड़े, घर हो गया अब खाली खाली। 

जुबां पर ज़ायका आता था जो एक अल्फाज़ निकलता था, 
अब उँगली click करने से बस एक झपकी गुज़रती है, 
बहुत कुछ तबाह हो गया और बचा है वो परदे पर खुलता चला जाता है। 

किताबों से जो काटी जाती थी राते सीने से लिपटे हुए 
गुजरते थी जो रातें, 
कभी गोदी में तो कभी घुटनों के बल बैठ पढ़ते थे, 
कभी अजीब सी सूरत बनाकर मुस्कुराया करते थे,
सजदे में कभी छूते थे जबीं से, जाने कहा को गया वो सुकून
Robot के इस जहान में।

©Heer #Books
किताबें 
बड़ी हसरत लिए बंद अलमारी के शीशों से झांकती किताबें, 
सोचती होगी पहले जिनसे रोज़ होती थी बातें, 
अब तो महीनों होती नही मुलाक़ातें। 

जो रातें गुजरती थी अक्सर साथ में, आज वो कटती है
 computer के साथ में, 
देख बड़ी बेचैन रहती हैं किताबें क्योंकि, 
उन्हें अब नींद में चलने की आदत हो गई है। 

जो किस्से कहानियां वो सुनाती थीं, battery जिनकी कभी
न खत्म होती थी, 
वो झलक अब नजर कही आती नही, 
रिश्ते रह गए उजड़े उजड़े, घर हो गया अब खाली खाली। 

जुबां पर ज़ायका आता था जो एक अल्फाज़ निकलता था, 
अब उँगली click करने से बस एक झपकी गुज़रती है, 
बहुत कुछ तबाह हो गया और बचा है वो परदे पर खुलता चला जाता है। 

किताबों से जो काटी जाती थी राते सीने से लिपटे हुए 
गुजरते थी जो रातें, 
कभी गोदी में तो कभी घुटनों के बल बैठ पढ़ते थे, 
कभी अजीब सी सूरत बनाकर मुस्कुराया करते थे,
सजदे में कभी छूते थे जबीं से, जाने कहा को गया वो सुकून
Robot के इस जहान में।

©Heer #Books
heertrivedi5954

Heer

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