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चलते-चलते कभी थक सो जाता हूं । तो कभी-कभी रुक सा ज

चलते-चलते कभी थक सो जाता हूं ।
तो कभी-कभी रुक सा जाता हूं ।
लेकिन कैसे कह दूं खुद से कि इतना बहुत है ,
जब बहुत लोगों की उम्मीद की शम्मां की तरह जल चुका हूं ।
फर्क नहीं पड़ता कि अब राख  हूंगा या खाक ,
इतना जानता हूं ।
कि चमकूँगा तो सूरज की तरह ही,
 मैं भी तो यह ठान चुका हूं ।
।। इस युग का मिर्जा गालिब ।। #उम्मीद 
 Anjita Basumatary su pu Aditya Prajapat Rohit singh Aaisha rana
चलते-चलते कभी थक सो जाता हूं ।
तो कभी-कभी रुक सा जाता हूं ।
लेकिन कैसे कह दूं खुद से कि इतना बहुत है ,
जब बहुत लोगों की उम्मीद की शम्मां की तरह जल चुका हूं ।
फर्क नहीं पड़ता कि अब राख  हूंगा या खाक ,
इतना जानता हूं ।
कि चमकूँगा तो सूरज की तरह ही,
 मैं भी तो यह ठान चुका हूं ।
।। इस युग का मिर्जा गालिब ।। #उम्मीद 
 Anjita Basumatary su pu Aditya Prajapat Rohit singh Aaisha rana