चलते-चलते कभी थक सो जाता हूं । तो कभी-कभी रुक सा जाता हूं । लेकिन कैसे कह दूं खुद से कि इतना बहुत है , जब बहुत लोगों की उम्मीद की शम्मां की तरह जल चुका हूं । फर्क नहीं पड़ता कि अब राख हूंगा या खाक , इतना जानता हूं । कि चमकूँगा तो सूरज की तरह ही, मैं भी तो यह ठान चुका हूं । ।। इस युग का मिर्जा गालिब ।। #उम्मीद su pu