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अपने हिस्से में वही पहर आता है जो सोच से दूर हो, ह

अपने हिस्से में वही पहर आता है जो सोच से दूर हो,
हालात देखना चाहती है की तुम कितना मजबूर हो,
हम मुस्कुरा देते है दर्द में भी हुनर यही कमाया है हमने,
लकीरों को मसल के आंसुओं के साथ सजाया है हमने,
कहने वाले अक्सर मुझे समझौते की इकाई कहते है,
हमे पता है की जितना पीसते है उसे वक्त की रिहाई कहते है।

©Abhiraj Kumar इकाई

#candle
अपने हिस्से में वही पहर आता है जो सोच से दूर हो,
हालात देखना चाहती है की तुम कितना मजबूर हो,
हम मुस्कुरा देते है दर्द में भी हुनर यही कमाया है हमने,
लकीरों को मसल के आंसुओं के साथ सजाया है हमने,
कहने वाले अक्सर मुझे समझौते की इकाई कहते है,
हमे पता है की जितना पीसते है उसे वक्त की रिहाई कहते है।

©Abhiraj Kumar इकाई

#candle