यूं तो चंचल बचपन से थी गुनगुनाती एक तितली थी कोई पन्ना कहीं मिलता उस पे हाथ चलाती मटरगशती की शौकीन चलती फिरती धांसू नमकीन मनमुताबिक हर चीज मिली कमी न बाबुल ने होने दी बहती उम्र से समय निकाल लिख डाला चंद पन्नो पर न कोई धरोहर ,न वसीयत न ही किसी कोई शिकायत लिख कर पा लेती हूं सुकून पड़ जाता है कुछ आराम। #तूलिका #तूलिकाकेरंगं नहीं मालूम क्या लिखती हूं बंद किताबों में नहीं छपना चाहती हूं लिख कर आती किसी के चेहरे पे ख़ुशी खुद को तब बड़ा महसूस करती हूं #योरकोटऔरमैं