न जाने पलक झपकते ही क्यों, दिलरुबा बेवफा करार हो गई, नुमाइश में तो अप्सरा थी बेचारी, करीब आकर नाचीज़ हो गई। । उसका हुस्न देख आँखें मेरी मुझसे यूँ झगड़ती रही धड़कने दिल की बेतहाशा इस क़दर बिगड़ती रही बे-वफ़ाओं से कभी ना सिखा हमनें तो सबक़ यारों कमबख़्त इश्क़ की परवान हर घड़ी बस चढ़ती रही © Pradeep Agarwal (अंजान)