यह शहर है मतलवी सा फिर हवाये भी धीमी हैं, तू बता दे फिर हमे कैसे दिया हमें पयगाम हैं!! मतलबी है तो मतलबी और भी कई तो इसके रूप हैं, यहां होते है अंजान सब होने लगता यहां जब शाम हैं!! दौरता है जब शङक दौरते हैं यहां सब अजनबी, कहीं किसी से दुरियां कहीं होता शङक गुमनाम है!! लगने लगता है कभी भी खोया खोया हैं अब तो डगर, कहीं तो कोई करता इवादत कहीं तो कत्लेआम हैं!! यहां तो हर कोई हैं उलझा हुआ उलझी हुई सी हैं शहर, कोई तो पुकारे वो खुदाया किसी का होता राम हैं!! समझने लगी है मंजिले दूर भी है पास भी हैं खाश भी हैं, कोई तो यहां भटका हुआ है किसी के हाथो जाम है!! वो शहर अब तो बता क्या तुम्हारे रंग है कितने तुम्हारे रूप हैं, कहीं तो तुने लगाये कहकहे कही तो उलझनो की तुफान हैं!! यह शहर है मतलबी सा रोहित तिवारी Vandana Mishra Su Hail HøT_Bõy_Øm