कहना तो पडेगा,मशालों में सप्रंदायिकता है। वेदी से डर किसको, कुर्बान तो हर वेदना है। राग अलापें क्या,चिरंजीवी मेरी जिव्हा है समाज का क्या दोष, कौडी भर मन है। मैं बोलता तो ठीक हूँ, पढा भी हूँ मसलन गरीबों का है, बेचता भी हूँ। जन वार्ता जो बनी, तोडता भी हूँ मेरी जयकार करो, परस्पर भी हूँ। तोडुंगा चिल्लाऊंगा-कसमें खाऊंगा सुबह-शाम चलता हूँ, समय भी हूँ। अपवाद हलों से, व्याभिचारी भी हूँ बातों में कटाक्ष,भ्रांति का फैलाव भी हूँ। Bss ynhii