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बात है साल 2020की जब भारत में पहली बार सम्पूर्ण ल

बात है साल 2020की जब भारत में पहली  बार सम्पूर्ण लॉकडाउन लगाया गया । क्योंकि उस समय भारत ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में कोरोना जैसी महामारी बहुत तेजी से अपने पैर पसार रही थी। वहीं इस लॉकडाउन का सबसे ज्यादा प्रभाव गरीब लोगो पर पड़ा था। क्योंकि गरीब लोग रोज मजदूरी करके अपने परिवार का भरण पोषण करते थे , लॉक्डाउन लगने की वजह से सभी लोगों के काम बंद हो गए थे । ऐसे में गरीब लोग भूख से दम तोड़ रहे थे । वहीं गांव की बहुत बड़ी आबादी पैसा कमाने के लिए शहर गई हुई थी तथा लॉकडाउन लगने से सभी परिवहन के साधन बंद हो गए थे जिससे उन मजदूर भाईयो को पैदल ही अपने गांव को जाने के लिए विवश होना पड़ा था। किसी के पैर में चप्पल थी तो किसी के पैरों को चप्पल भी नसीब नहीं थी । ये मंजर देखकर आंखों में आंसू आ जाते थे । भूख प्यास से तड़पते मजदूर भाईयो के बच्चे रास्ते में कहीं कोई छायादार पेड़ ढूढते थे कि कोई छायादार पेड़ मिल जाए तो कहीं किसी तरह दोपहरी का गुजारा हो जाए । उन मजदूर भाई बहनों की ये यात्रा उनके जीवन की सबसे दुखद यात्रा थी। जिसे देखकर ऐसा लगता था मानो जैसे कोई हमारे देश पर कोई दुखो का पहाड़ टूट पड़ा हो । इस यात्रा में कई मजदूर भाई बहनों तथा उनके बच्चो ने भूख प्यास से रास्ते में ही अपने प्राण त्याग दिए थे। 
अंत में मैं भगवान से यही प्रार्थना करता हूं कि ऐसी यात्रा कभी भी किसी को ना करनी पड़े।।

©Brijesh Ahirwar दुख भरी कहानी
#Thoughts
बात है साल 2020की जब भारत में पहली  बार सम्पूर्ण लॉकडाउन लगाया गया । क्योंकि उस समय भारत ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में कोरोना जैसी महामारी बहुत तेजी से अपने पैर पसार रही थी। वहीं इस लॉकडाउन का सबसे ज्यादा प्रभाव गरीब लोगो पर पड़ा था। क्योंकि गरीब लोग रोज मजदूरी करके अपने परिवार का भरण पोषण करते थे , लॉक्डाउन लगने की वजह से सभी लोगों के काम बंद हो गए थे । ऐसे में गरीब लोग भूख से दम तोड़ रहे थे । वहीं गांव की बहुत बड़ी आबादी पैसा कमाने के लिए शहर गई हुई थी तथा लॉकडाउन लगने से सभी परिवहन के साधन बंद हो गए थे जिससे उन मजदूर भाईयो को पैदल ही अपने गांव को जाने के लिए विवश होना पड़ा था। किसी के पैर में चप्पल थी तो किसी के पैरों को चप्पल भी नसीब नहीं थी । ये मंजर देखकर आंखों में आंसू आ जाते थे । भूख प्यास से तड़पते मजदूर भाईयो के बच्चे रास्ते में कहीं कोई छायादार पेड़ ढूढते थे कि कोई छायादार पेड़ मिल जाए तो कहीं किसी तरह दोपहरी का गुजारा हो जाए । उन मजदूर भाई बहनों की ये यात्रा उनके जीवन की सबसे दुखद यात्रा थी। जिसे देखकर ऐसा लगता था मानो जैसे कोई हमारे देश पर कोई दुखो का पहाड़ टूट पड़ा हो । इस यात्रा में कई मजदूर भाई बहनों तथा उनके बच्चो ने भूख प्यास से रास्ते में ही अपने प्राण त्याग दिए थे। 
अंत में मैं भगवान से यही प्रार्थना करता हूं कि ऐसी यात्रा कभी भी किसी को ना करनी पड़े।।

©Brijesh Ahirwar दुख भरी कहानी
#Thoughts