हिंदी दिवस हिंदी को भी रहने दो बोलो कोई भी भाषा तुम और किसी में लिखने दो। बोलचाल व लेखन में तुम हिंदी को भी रहने दो।। हिंदी है मातृ भाषा हमारी यह तो माता समान है। और भाषाओं के सन्मुख क्यों इसका करते अपमान हैं? झूठा सम्मान पाने को देते अंग्रेज़ी उत्कोच है। क्यों उससे मस्तक ऊँचा क्यों हिंदी से संकोच है? अंग्रेजी है मेहमान सरिस मेहमान को वही बस रहने दो। बोलचाल व लेखन में तुम हिंदी को भी रहने दो।। जैसे जैसे उपयोगिता यहाँ अब हिंदी की घटी है। वैसे वैसे ही संस्कृति की पूर्व सुगन्ध हटी है।। देशी भाषा त्याग के सब विदेशी लगे अपनाने। सम्मुख खड़ी कामधेनु तज गदही लगे दुहाने।। वह तुमसे कुछ कहना चाहती उसको भी कुछ कहने दो। बोलचाल व लेखन में तुम हिंदी को भी रहने दो।। त्याग के हीरा टुकड़ा काँच का रखने का यह कृत्य क्या? हिंदी के बिन कैसा काव्य क्या है अर्थ साहित्य का? जैसे ललाट सुहागिन का है अपूर्ण बिन बिंदी। वैसे ही है रचना अपूर्ण है बिन मृदुभाषा हिंदी।। बहुत सहा है भेदभाव अब इसे और न सहने दो। बोलचाल व लेखन में तुम हिंदी को भी रहने दो।। बोलो कोई भी भाषा तुम और किसी में लिखने दो। बोलचाल व लेखन में तुम हिंदी को भी रहने दो।। ✍️अवधेश कनौजिया© #हिंदी_दिवस हिंदी को भी रहने दो बोलो कोई भी भाषा तुम और किसी में लिखने दो। बोलचाल व लेखन में तुम हिंदी को भी रहने दो।।