आँखों की फितरत कुछ ऐसी हो गई है मियाँ इज़्ज़त बचाने को लिबास कम पड़ जाते हैं सुनाने जब भी जाता हूँ नगमा बेवफाई का मेहफिल मे साथ देने को साज़ कम पड़ जाते हैं और लाल साड़ी मे वो जब भी आती है तारीफ को उसकी अल्फाज कम पड़ जाते हैं ~ प्रणव पाराशर ... Nazm...