#OpenPoetry उसके संगेमरमर जिस्म पर ये महीन कपड़ा , कांच के किसी बरत में पानी हो जैसे । सुर्ख गुल वो गुलाब का तारो ताज़ा, एक पैर पर खड़ी किसी की जवानी हो जैसे । (राज मस्ताना) राजू थापा उसके संगेमरमर जिस्म पर,