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संकुचित सोच का वाहक नर क्या रच सकता रचना अपार? संक

संकुचित सोच का वाहक नर
क्या रच सकता रचना अपार?
संकीर्ण सोच में डूबा मन
प्रतिपल करता मिथ्या विचार।।
पर तपोनिष्ठ नर को है सुगम
जो लक्ष्य करे साधन पा लेे
कर दे मंथन सागर तल तक
या सकल व्योम की टोह पा ले।।
विचार करो तुम जांचो परखो
फिर दृष्टि धरो उन्नत पथ पर
तिमिर हटाने जग का जैसे
दिनकर आरूढ़ हुए रथ पर।।
जलता अंतस में सूरज भी
जलता है दीया और तारक भी
पर इसी त्याग से उर्जित नभ
है जीवन ज्योति का कारक भी।।

-vishal अंतस ज्वाला
संकुचित सोच का वाहक नर
क्या रच सकता रचना अपार?
संकीर्ण सोच में डूबा मन
प्रतिपल करता मिथ्या विचार।।
पर तपोनिष्ठ नर को है सुगम
जो लक्ष्य करे साधन पा लेे
कर दे मंथन सागर तल तक
या सकल व्योम की टोह पा ले।।
विचार करो तुम जांचो परखो
फिर दृष्टि धरो उन्नत पथ पर
तिमिर हटाने जग का जैसे
दिनकर आरूढ़ हुए रथ पर।।
जलता अंतस में सूरज भी
जलता है दीया और तारक भी
पर इसी त्याग से उर्जित नभ
है जीवन ज्योति का कारक भी।।

-vishal अंतस ज्वाला
vishalsaini4434

Vishal Saini

New Creator

अंतस ज्वाला #कविता